बिल्लेसुर त्रिलोचन के जाने के साथ घर के भीतर गये और कुछ देर में तैयार होकर बाहर के लिये निकले।
लोगों ने पूछा, कहाँ जाते हो बिल्लेसुर? बिल्लेसुर ने कहा, पटवारी के यहाँ।
शाम होते-होते लोगों ने देखा, तीन बड़ी-बड़ी गाभिन बकरियाँ लिये बिल्लेसुर एक आदमी के साथ आ रहे हैं।
गाँव भर में हल्ला हो गया, बिल्लेसुर तीन बकरियाँ ले आये हैं। सबने एक-एक लम्बी साँस छोड़ी।
बकरियों का समाचार पाकर त्रिलोचन फिर आये।
कहा, बकरी ले आये, अच्छा किया, अब ढोर काफ़ी हो जायँगे।
बिल्लेसुर ने कहा, "हाँ, बैलोंवाला विचार अब छोड़ दिया है, कौन हमारे सानी-पानी करेगा? बकरियों को पत्ते काटकर डाल दूँगा।
बैलों को बाँधकर बैल ही बना रहना पड़ता है।"
"और किसानी?"
"बंटाई में है, साझे में कर लेंगे।"
(7)
बिल्लेसुर ने लम्बे पतले बाँस के लग्गे में हँसिया बाँधा, बढ़ाकर गूलड़-पीपल-पाकर आदि पेड़ों की टहनियाँ छाँटकर बकरियों को चराने के लिये।
तैयारी करते दिन चढ़ आया।
बिल्लेसुर गाँव के रास्ते बकरियों को लेकर निकले।
रामदीन मिले, कहा, "ब्राह्मण होकर बकरी पालोगे? लेकिन हैं बड़ी अच्छी बकरियाँ, खूब दूध देंगी, अब दो साल में बकरी-बकरों से घर भर जायगा, आमदनी काफ़ी होगी।"
कहकर लोभी निगाह से बकरियों को देखते रहे।
रास्ते पर जवाब देना बिल्लेसुर को वैसा आवश्यक नहीं मालूम दिया। साँस रोके चले गये।
मन में कहा, "जब ज़रूरत पर ब्राह्मण को हल की मूठ पकड़नी पड़ी है, जूते की दुकान खोलनी पड़ी है, तब बकरी पालना कौन बुरा काम है?" ललई कुम्हार अपना चाक चला रहे थे, बकरियों को देखकर एक कामरेड के स्वर से बिल्लेसुर का उत्साह बढ़ाया।
बिल्लेसुर प्रसन्न होकर आगे बढ़े। आगे मन्दिर था।